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________________ आगम (०१) [भाग-1] “आचार” – अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [१], उद्देशक [४], मूलं [३७], नियुक्ति: [१२५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३७] दीप अनुक्रम [३८] म्भाविनीति, अत एव च भगवत्यां भगवतोक्तम्-"दो पुरिसा सरिसवया अन्नमन्नेहिं सद्धिं अगणिकार्य समारंभंति, तत्थ ण एगे पुरिसे अगणिकार्य समुज्जालेति, एगे विझवेति, तत्थ णं के पुरिसे महाकम्मयराए? के पुरिसे अप्पकम्मयराए?, गोयमा! जे उज्जालेति से महाकम्मयराए, जे विज्झवेति से अप्पकम्मयराए"॥ तदेवं प्रभूतसत्त्वोपमईनकरमण्यारम्भ विज्ञाय मनोवाकायैः कृतकारितानुमतिभिश्च तपरिहारः कार्य इति दर्शयितुमाह एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति, तं परिणाय मेहावी व सयं अगणिसत्थं समारंभे नेवऽपणेहिं अगणिसत्थं समारंभावेजा अगणिसत्थं समारंभमाणे अण्णे न समणुजाणेजा, जस्सेते अगणिकम्मसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे (सू. ३८) त्ति बेमि ॥ इति चतुर्थ उद्देशकः ॥ 'अत्र' अग्निकाये 'शस्त्र' स्वकायपरकायभेदभिन्नं 'समारभभाणस्य' व्यापारयत इत्येते आरम्भाः पचनपाचनादयो पन्धहेतुत्वेनापरिज्ञाता भवन्ति, तथा अत्रैवाग्निकाये शस्त्रमसमारभमाणस्यैते आरम्भाः परिज्ञाता भवन्ति, यस्यैते अग्नि द्वौ पुरुषी सदशमयसी अन्योऽन्य समकममिकार्य समारम्भवतः, तत्रैकः पुरुषोऽग्निकार्य समुज्ज्वलयति, एको विध्यापयति, तत्र कः पुरुषो महाकर्मा कपुरपोल्पकर्मा, गौतम! व उगवलयति स महाकर्मा यो विभ्यापयति सोऽल्पकर्मा. For P OW Alunaurary.orm [122]
SR No.035001
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 01 Aachaar Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size64 MB
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