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________________ (७२) चातुर्यता ? हमारे तो चतुर्दशीके अंदर चौदश पुनम दोनों विद्यमान होनेसें 'पंचांगकी त्रयोदशीके दिन चतुर्दशी, और चतु दशीके दिन पूर्णिमा इस प्रकार दोनो हीं पर्व की आराधना होने से क्षीण पूर्णिमाकी भी आराधना होती है ऐसा कहकर शास्त्रकारने वादीको यह भी समझा दिया कि हमारेतो क्षीण पूर्णिमा की आराधना भी होती है तो चतुर्दशीकी आराधना तो उपरोक्त रीति से हो ही गई इसमें हमारेकों भी चतुर्दशीका नाम नहीं रहेगा इस शंकाको स्थान ही नहीं है ऐसा जानते हुए भी हमारे मुँह से फीर बुलवानेकी प्रेरणा करता है ? यहां पर शास्त्रकारने "आपकों तो क्षय ऐसी चतुर्दशीका नाम तक नहीं रहता है " ऐसी जो खरतरको आपत्ति दी है उसी आपत्तिको यहांपर सिद्ध करके दिखलाई है इसमें आपके नये मतानुसार एक दिनमें दो तिथियें आराधने संबंधि बातकी गंधही कहां है ? अब देखिये दूसरी बात यह है कि खरतर भोग है गंध है ज्यादे है पूर्ण है. ऐसी मान्यतावाला होनेसे उसे शास्त्रकार कहते है कि पूर्णिमामें चतुर्दशीकी गंधभी नहीं होने से पूर्णिमामें क्षीण चतुर्दशीको माननेसें तो आरोपित चतुदेशीको ही तूं मानता है और हमारे यहांतो ( पंचांगकी चतुर्दशीमें पूर्णिमा होने से ) उसरोज पूर्णिमाकी वास्तविक स्थिति है ! न कि आरोपित यदि आपके कथनानुसार ऐसें वख्त जो चतुदेशी और पूर्णिमां शरीक होती तो ऐसी निःशंक साध्यरूपा पूर्णिमाकी हयाति दिखाने को "द्वयोरपि विद्यमानत्वेन" इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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