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________________ है. और इन्द्रमलजी की ओर इशारा कर कहते है.) कहिये पंडितजी ! इन्द्रमलजी साहब, कहते है कि "ज्यारे आराधवानी उदयतिथि" 'सातम जे उदय तिथि छे ते ग्रहण करीने आराधवी' "आराधना माटे" वगैरह वाक्य जो जंबुवि० ने भाषान्तरमें लिखे है यहतो अध्याहार लिया है, यह वास्तविक है क्या ? उपरोक्त वाक्य अध्यायार लिये जा सकते है ? ( इतना सुनकर पंडितजी तत्वतरंगिणीको पढ़ते है बाद पर्वतिथिप्रका. शको पढ़ते है, पढ़कर ) पंडि०-ऐसा तो अध्याहार नहीं लिया जाताः क्योंकिभाषांतरसे मतलब सिर्फ भाषाकी तब्दिलीसे है. न कि विचारों की तन्दिलीसे ! अच्छा. आप जब मुझे मध्यस्थ बनानेको तय्यार है, तो आपमें वादी कोन और प्रतिवादी कोन यहतो बतलाईये? __ वकी०-इन्द्रमलजी तो वादी और मैं प्रतिवादी. (इन्द्रमलजीसे ) अच्छा, अब आप आगेको पढ़ीये! इन्द्र०-(पर्वतिथिप्रकाश पृ. २१ खोलकर पढ़ते है) 'उपर मुजब पर्व तिथिओनी क्षयवृद्धि होवाथी मुलगाथाना पूर्वार्धमां तिथि पड़ी होय तो पूर्वनीज तिथि ग्रहण करवी. अने वत्री होयतो उत्तरनी एटले बीजीज सूर्योदयनी तिथि ग्रहण करवी. श्रीवीरप्रभुन निर्वाण कल्याणक लोकने अनुसारे जाणवू अर्थात् लोक करे ते दीवाली." वकी०-( इन्द्र० से ) कहिये ! अब आपही कहिये कि आप जो अर्थ कह गये है ओर जंबुवि० ने जो अर्थ लिखा है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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