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________________ (३४) उन्होने यहभी कहलाया है कि-बरातके तमाम लोगोंको खबर दे देवें कि-जिन २ को जो जो वस्तु चाहिये वो तमाम उनके वहांसे मंगवा ली जावे ! और यहभी सुना है कि पहरामणीमें प्रत्येक बरातीको कमसे कम २०-२५ रूपेका शिरोपाव देवेंगे! गुला०-अब तो आपको फुरसद ही होगा. आज उस. दिनकी तिथिचर्चाकी रही हुई अधुरी बात पूरी की जावे तो क्या हरकत है ? इन्द्र०-कोई हरकत नहीं, चलाइये. गुला०-तो कहिये तिथिकी क्षयवृद्धि होती है या नहीं? इन्द्र०-होती है होती है और (बहुत जोरसे) होती ...है. वकी०-तिथिसे आप सामान्य तिथि न समझे. यहां जो तिथि शब्दका प्रयोग किया जाता है, उसमें २-५-८-१११४ पुनम और अमावसहीका समावेश है. इन्द्रः-तो पर्वतिथि ऐसा कहो. वकी०-जीहां यही मतलब. इन्द्र० - बहुत अच्छा. ( वकीलसा तत्वतरंगिणी हाथमें लेकर इन्द्रमलजीको देते है. इन्द्रमलजी उसे अलग रखकर, पर्वतिथि प्रकाश नामक पुस्तक वकीलजीको देते है.) वकी०-यह क्या है ? इन्द्र०-यह तत्वतरंगिणीका भाषांतर है. इसीको आप देखिये, जिससे साबीत हो जायगा कि तिथियोंकी क्षय वृद्धि की प्रवृत्ति नई है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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