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________________ यह हो कि जवाई साहबका तोल करवा लिया जावे ताकि शादी समाप्त होनेपर वापिस तोलने पर यह पता अच्छी प्रकारसे चल सके कि बेचारी लाचारीका बोझा आपपर कितना गिरता है. शेठ० -(हँसमुखरायसे) तुम्हारी ठठा करने की आदत अभी लो नहीं मिट पाई है. हँस०-सेठसाहब ! आदत जाय मुंआं ने टाट जाय रुआं. सेठ०-खैर जाने दीजिये अबतो वक्त होचुका है चलिये. (जाते है). तृतीय किरण. ( स्थान-मोहनलालजी वकीलका दफ्तर ) दो पहरका वक्त है दफ्तरमें एक खुसीपर वकील सा० मोहनलालजी बैठे हुए है सामने मेजपर चन्द कागजात पड़े हुए है, उनके सामने खुर्मीयोंपर तीनचार मुवकील बैठे हुए है विजलीका पंखा चल रहा है, टेवलपर एक तस्तरीमें पानसुपारी व तम्बाकु पड़ी हुई है. . ___मोह०-(वृद्धिचंदजीसे) पानतो बनाईये (वृद्धिचंदजी पान बना सबको देते है) ... गुला०-वकील साहब ! इन्द्रमलजी तो आये ही नहीं. वकी०-नहीं आये तो हमें क्या मतलब उनकी मरजी हो आवें चाहे नहीं आवे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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