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________________ (१८८) इसके बाद उन लोगोके तरफसें आ० विजयकनकमूरिके नामसहित एक हेन्डबील निकाला कि-'प्रभु आज्ञा धारीयोंने गुरूवारको चौदश करना!' आदि उस हेन्डबील को देखतेंही श्रीहंससागरजीने एक चिट्ठी कनकसूरिको भेजी. उसमें लिखा कि-" आजेज तिथिनो निर्णय करवा हुं आपनी पासे आवं छु." चिट्ठी मिलते ही कनकमरिने अपने एक शिष्य कंचनविजयजीको श्रीमान् आचार्यमाहाराज श्रीसागरानंदसूरीश्वरजीके पास मेजकर कहलाया कि-'मुझे पुछे बिना ही यह हेन्डबिल छपवाया है और मैं आपके साथ चर्चा करूं ऐसा बने क्या ? वगैरह. इसके बाद विशेष जानकारीके लिये श्रीहंससागरजी शांतिभुवनमें गये, और कनकसूरिसे पुछा तो बोले कि शुक्रवारको चतुर्दशी करनेवाले विराधक है ऐसा मैं तो नहीं कह सकता! और आचार्य माहाराजके माथमें चर्चा करनेकी होवे ही नहीं! इसके अलावा मेरा यह विषयभी नहीं है ! वगेरा. इस अर्सेमें मुनि श्री विमलसागरजीने भी एक पत्रिका जाहिर कीद थी, उसकोभी मैं आपको सुनाता हुं ! सुनियेश्रीजैनशास्त्र अने जैनाचार्यनी परंपराने __ माननाराओने सूचना. सेंकडों वर्षोथी शास्त्र अने परंपराथी, बे पुनम अने बे अमावास्या ज्यारे टीप्पनामां आवे छे त्यारे त्यारे बे तेरशो करवामां आवे छे. अने ते मुजब आ वखते महा वद अमावास्सा बे होवाथी सकल श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सारा सारा गच्छोना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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