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है ! अब बात यह है कि-जं० वि० के लिखानसे यहतो सिद्ध हुआ कि उन्होने जो तिथिपत्रकके पन्ने में से अधुरा पाठ लिखा है उन तिथिपत्रककारको तो जं० वि० अपनी मान्यतावाले ही मानते है इसी सबबसे ही उन्होने अपने पुरावेमें ये पत्रक पेश किये है न?
इन्द्र०-नहीं ये तो आणमूर गच्छवालेकी ही मान्यता है. इनसे हमें क्या वास्ता? यहतो एक दाखला तरिके दिखाये है कि-पूर्णिमा क्षयमें त्रयोदशीका क्षय नहीं होता.
वकील-इधर आप कहते है कि हमें क्या वास्ता? और आपके पूज्य तो पर्व० प्र० पृ. १४६ पंक्ति १७ वीमें लिखते है कि-"तेमां शास्त्रसिद्धान्तने मलतो शुद्धसमाचारीदर्शक उल्लेख छे, तेज मानी लो" एसा लिखकर आपके गुरूतो इस पत्रकको शास्त्रानुसार कहते है ! गुरू और भक्तमें इतना विरोध क्यों ? इससे यह बात तो स्पष्ट हो गई कि-आणसूर गच्छवालेभी साथ आइ हुइ पर्वतिथिमें से उत्तरपर्वतिथिके क्षयके वक्त एक पर्वतिथिका लोप तो नहीं ही करते है. ये पत्रकार भी पूर्णिमा क्षय और वृद्धिके वक्त उदयवाली त्रयोदशीका क्षय और वृद्धि नहीं करते है. यह तो उनकी भूल ही है, और उसके बदल उदयवाली प्रतिपदाका क्षय और वृद्धि करते है यहभी उनकी भूल ही है, लेकिन पर्वतिथि क्षयके बदल अपर्वतिथिका क्षय और वृद्धिके बदल अपर्वतिथिकी वृद्धिको तो कायम ही रखते है. (यही बात आपके गुरुजी अब उलेटते है) औरभी सुनिये!
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