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अंतरमें भी इस मुआफिक तिथियोंकी वृद्धि होती है, एसा आप सप्रमाण साबीत करसकते है क्या? यदि नहीं तो दूसरी एकमके दिन कल्पप्रारंभ आता ही नहीं है यह बाततो सत्यही है न? इसी सबब एकमको 'प्रथमा द्वितीया' ऐसे विशेषणकी आवश्यकता नहीं रहती है. अमावास्या जो दो होवे तो उसमें तो कल्पप्रारंभ दोनोहीमें आसकता है, वास्ते वहां विशेषणकी जरूरत रहती है, तोभी शास्त्रकारने उत्तरमें अमावास्या करके ही छोड दीया है. इसीसे साफ सिद्ध है कि जैनपद्धति अनुसार वृद्धितिथि होती हि नहि. अमावास्या दो होवे और एकमसें पंचमी तक कोई भी तिथिका क्षय होवे तब पहली अमावास्याको कल्पवांचन आता है. यदि अमावास्या ही दोहोवे तो दूसरी अमावास्याको कल्पवांचन आवेगा.
इन्द्र०-ऐसे दोचार दिनके अंदरही क्षय और वृद्धि दोनों ही आते है क्या?
वकी०-हां आते है ! देखिये, सं. १९९७ में माघशुक्ल १२ दो है और १३ का क्षय है ! वैसेही फाल्गुनकृष्ण १२ का क्षय है और अमावास्या दो है. सं. १९९८ वेमें पौषशुक्ल ६ का क्षय है और ७ दो है. · इन्द्र०-आप किस पंचांगकी बात करते है ?
वकी०-चंडांशु चंडु. न कि अन्यपंचांग! वास्ते अमावसको विशेषणकी खास आवश्यकता रहती है. और एकम यदि दो होके तोभी हरबख्त पहली ही एकममें कल्पवांचन आता
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