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(१४) पूर्वान्तर तिथिका क्षयतो शास्त्रकारने कहीं भी कहा नहीं है यहतो सच्चा है न ?
वकी०-शास्त्रकारने तो यह दिखा दिया है कि क्षयमें पूर्वका क्षय करना और इस बातको जैसा अब आप कबूल भी कर चुके है वैसा आपके गुरू रामविजयजीने भी पर्वतिथिके क्षयके वक्त पूर्वतिथिका क्षय ही कबूल किया है अब झूठ बोले उसको क्या कहना ? देखिये उन्हीका जैनप्रवचन वर्ष ६ अंक १२-१३-१४ पृ. १७७ में साफसाफ लिखते है कि
"तत्त्वतरंगिणीनो आधार तो संवत्सरीनी चोथना क्षये ब्रीजनो क्षय करवानो छे." ।
अर्थात् क्षयके वख्त पूर्वअपर्वतिथिका क्षय ही होता है ! अब आप कहिये कि पूर्णिमा-अमावास्याके क्षय में क्या चतुर्दशीका क्षय होगा?
इन्द्र०-चतुर्दशी और पूर्णिमा दोनो ही शामिल हो जाय फीर क्या हरकत?
वकी-यदि क्षीणपर्वतिथि पूर्वतिथिमें शामिल ही हो जाती तो रामविजयजी " चोथना क्षये 'त्रीज चोथ भेगां छे ऐसा नहीं बोलते हुए श्रीजनो क्षय करवानो छे" ऐसा बोलते क्या ? नहीं! कभी नहीं!! यहां कहनाही पड़ेगा कि वहां तकतो वह भेलसे लिये मतको मानते नहीं थे. यह मत तो पीछेसेही निकाला गया है ! अच्छा महीने में बाराही पर्वतिथिको ब्रह्मचर्य पालनेका जिसको नियम है, उसने क्या उस क्षयके पख्त ग्याराही तिथि नियम पालना?
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