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________________ (१) बनामित पधिरकर्णजापः कृतः । स्थले कमलरोपणं सुचिरमूषरे पर्षणं, तबंधमुखमण्डनं यदबुधजने भा. षणं ॥१॥ इति काव्यं कविमिर्भवन्तमेवाधिकृत्य बिदधे. अर्थ:-" मूर्ख जनको समझाना, जंगलमें रुदन करना, मुरदेके शरीरको तैलादि सुगंधी द्रव्योंसे मालीस करना. श्वानकी पुंछको सीधी बनाने के लीये नमाना, बहरेके कान में जाप करना, मरु भूमिके अंदर कमलको बोना, उपर जमीन पर बा. रीषका बहोतही गिरना और अंधेके मुखकी शोमा करने जैसा हीहै." इस काव्यको कविने तेरे लीयेही बनाया? सुना साहब! शास्त्रकारतो चतुर्दशी क्षयके वख्त वादीके मुंहसे त्रयोदशीका ( उदयपूर्वक समाप्तिवाली तिथिका) नाम तक सुनना नहीं चाहते है यह बाततो सत्य ही है न?. इन्द्र०-हां यह बाततो सत्य ही है. वकी०-वहां पर आपके पूज्यश्री फरमाते है कि आज त्र. योदशी है और उसमें चतुर्दशीकी आराधना की है यह कैसा असंगत है! इन्द्र०-आपकी बताई हुई युक्तियोंसे यहतो सिद्ध हुआ कि पर्वतिथिके क्षयमें पूर्व तिथिका क्षय ही करना योग्य है लेकिन. (इतने में) ___ वकी०-मेरी बताई हुई युक्तिये नहीं है किंतु शास्त्रकारकी युक्तियें है, ऐसा कहिये ! इन्द्र०-अच्छा, 'शास्त्रकारकी' ऐसा ही रखिये. लेकिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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