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________________ विकल्पेषु शेषतिथ्यपेक्षयैकस्यामेव तिथौ एकादिषटिकामिराधिक्यमसूचि, तथा च यं सूर्योदयमवाप्य समाप्यते या तिथि: स एव सूर्योदयस्तस्यास्तिथेः प्रमाणं, शेषतिथिनामिव, प्रयोगस्तु प्राप्तसूर्योदयद्वयलक्षणायास्तिथैः समाप्तिसूचक उदयः प्रमाणं, विवक्षितवस्तुसमाप्तिसूचकत्वात् , यथा शेषतिथीनामुदया, व्यतिरेके गगनकुसुमम् , अथ तिथीनाम् पद्धौ हानी च का तिथिः स्वीकार्यत्यत्रोभयोः साधारण लक्षणं उत्तरार्द्धनाह'जं जा मिति यद् यस्मात् या तिथिर्यस्मिन आदित्यादिवारलक्षणदिवसे समाप्यते स एव दिवसो वार लक्षणः प्रमाणमिति तत्तिथित्वेनैव स्वीकार्यः, अत्र हु एवकारार्थे झातव्य इत्यर्थः, अत एव 'क्षये पूर्ण तिथिया' तस्मिमेव दिवसे दूयोरपि समाप्तत्वेन तस्या अपि समाप्तत्वात , एतत् संवादकं च 'तिहि वाए पुवतिही ति गाथा व्याख्यावसरे प्रपंचितमिति गाथा. र्थः॥१७॥ ___अर्थ:-चलते हुए प्रकरणसें तिथिकी वृद्धि होते हुए (च, अपि अर्थमें है.) भी आज संपूर्ण तिथि है, ऐसी भ्रान्ति करके आराध्यपने पहली तिथि ग्रहण नहीं करना किंतु दूसरी तिथि ही ग्रहण करना. (यहां वादीकी शंकाको ग्रन्थकार स्वयं उपस्थित करके उसका समाधान करते है. ) कारण कि-यह तिथिका कृद्धित्वपना क्या? तिथिका उबलपना ? या, एक तिथि प्राप्त किया है अधिक सूर्योदय ऐसा अगर एक तिधिने दो सूर्योदय प्राप्त किये है, ऐसा ? या दसरे सूर्गेदयको प्राप्त होकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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