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________________ (९७) की० - वकील हो, एसा कहने से क्या होता ? आप जो साथ - शरीक - सामिल वगैरह शब्द कहते हैं, उसे सिद्ध करना आपका फर्ज ही है न ? इन्द्र० - फर्ज बर्ज कुछभी नहीं ! हमें तो शास्त्रका वचन प्रमाण है. और शास्त्रमें कहा है कि "तस्या अप्याराधनं जातम् " वकी० - " तस्या अपि " इस वाक्यसे उसकाभी आराधन हो गया ऐसा जो आप मानते हो तो कहिये कि - किसका आराधन हो गया ? -- इन्द्र० - क्षय तिथिका. वकी० - दूज के क्षयमें आपने एकमकी आराधना की या दूजकी ? उसरोज मुख्यता किसकी मानोंगें ? इन्द्र० - आराधना में तो मुख्यता दूजदीकी मानेंगें, क्योंकि- आराधना तो दूजकीही करनी है न ? वकी० - अच्छा, पूर्णिमा के क्षय में मुख्यता किसकी मानोंगे ? इन्द्र०- पूर्णिमाके क्षयमें मुख्यता चतुर्दशीकीही रहेगी, और आराधना दोनोंहीकी हो जायगी. वकी० - इस अर्धजरतीय न्यायको अनुसरनेका शाखकारतो खरतर को कहते है, परंतु इस मेलसेलीये मतसे तो आपहीने भी यह न्याय मंजूर कर लिया है. इन्द्र० - यह कैसे ? वकी० - आप नहीं समझे क्या ? इन्द्र०- ( कुछ विचारकर) हां हां समझ गया ! जैसे खरतर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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