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________________ इन्द्र०-कितनेक कहते है कि तिथियोंकी क्षयवृद्धि नहीं होती यह बात तो गलत ही है न? क्योंकि-यदि क्षयवृद्धि नहीं होती तो भगवान् उमास्वातीजी माहाराजको प्रघोष बनानेकी जरुरतभी नहीं रहती. वकी०-जैनपंचांगकी रीतिसेतो अमुक अमुक महीनोंमें ही तिथियोंका क्षय होता है, लेकिन वृद्धि तो होती ही नहीं है. इन्द्र०-वृद्धिभी होती है. देखिये पर्वतिथिप्रकाश पृष्ट १८ में श्रीमान् उपाध्यायजी माहाराज लिखतें है कि-जैनज्योतिषके अनुसार क्षय और वृद्धि दोनोही होते है, और इसकी सिद्धिके लिये सूर्यप्रज्ञप्तिका पाठभी दिया है कि-जैनपंचांगका विच्छेद होनेसे अन्य पंचांगका आश्रय लेना पड़ता है ! और जैनपंचागमें यदि क्षयवृद्धि नहीं होती तो प्रघोषकी जरूरतभी नहीं रहती, यह तो मैं पहलेही कह चुका हूं । वकी०-आप जैनपंचांगका विच्छेद होना बताते है सो प्रवृत्तिरूपसे या गिनतीरूपसें ? क्योंकि प्रवृत्तिरूप जैनपंचांग जो श्रीमान् सुधर्मास्वामीजी माहाराजके वक्त में होता तो शास्त्रों में जहां तहां कत्तिस्स बहुलस्स 'चित्तस्स बहुलस्स' आदि नहीं कहते, लेकिन 'अभिनंदस्स बहुलस्स' आदि कहते । और तिथियों में भी अट्ठमी तेरसी वगैरह नहीं कहते हुए जो नाम तिथियोंके जैनशास्त्रों में कहे है वे ही नाम कहते. सो तो नहीं कहे ! इससे साबूत हो सकता है कि-श्रीमान सुधर्मास्वामीजी माहाराजके वकभी जैनशासनमें अन्य पंचांगका व्यवहार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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