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________________ ऐसा न हो तो पहले पांवको किचड़में डालना और पीछे पानी से साफ करने जैसा ही होता है, इसके अलावा "मात्रालाघवमप्युत्सवाय मन्यते वैयाकरणाः" इस युक्तिको भी ग्रंथकार नहीं जानतेथे, एसाही मानना पड़ेगा! दर असल शास्त्रकारने सबही पूर्णिमाओंमें पौषधव्रत ग्रहण किया है. और इस पातके पूरावेमें मैं पहले आपको योगशास्त्रका दाखलामी बता चुका हूं. अच्छा, अब आप आगेको देखिये! 'आवयोः' शब्दको तो आपके पूज्यजीने न मालूम कहां छुपा दिया, सो नजरभी नहीं आता! अच्छा, अब आगेको देखिये ! आपके गुरुजी 'परगच्छ' शन्द कहांसे ले आये ? औरभी देखिये! 'चौदशने दिवसे, चौदश अने पूर्णिमा बन्ने तिथि पूरी थाय छे-तेथी चौदश भेगी पुनमनी पण आराधना थइ गइ" इन वाक्योंको आप टीकामें बता सकते है क्या? औरभी देखिये ! 'तमारूं शु थशे' यह वाक्यमी आपके गुरूजी कहांसे ले आये ? "अहो वैदग्ध्यं" वगेरा सारी पंक्तिहीको तो वे खाहाः ही कर गये है. अच्छा, औरभी आगेको देखिये" बेत्रण कल्याणक तिथिओ साथे आवेली होय अने मानो के तेमा उत्तरतिथिनो क्षय आवेलो होय त्यारे पण शुं तमे पुनमना क्षयनी माफक तेना क्षयने पाछलनी कल्याणक तिथिमा समावी देशो ? आ प्रश्ननो उत्तर आपतां शास्त्रकार जणावे छे के बेशक ! हा, एमां पुछवानुंज शु" वगैरह पंक्तियें टीकामें शायद आपके पूज्यकोही मिली होगी कि जिससे उनोंने लिखी है ? औरभी देखिये! चौदशनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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