SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८०) एक कल्याणकतिथिका क्षय हो तब "क्षये पूर्वी" का नियम लगाकर पूर्वतिथिको क्षय करना ऐसा करतें यदि पूर्व में पर्वतिथि हो तो पूर्वतर तिथिका क्षय करना "जैसे अक्षय तृतीयाके क्षय वक्त एकमका ही क्षय किया जाता है यदि वह पूर्वतरतिथिभी कल्याणक पर्वतिथि हो तो उससे भी पूर्वकी अपर्वतिथिका क्षय करना ऐसा आचार्य माहाराजका लेखभी इसी बातको पुष्ट बनाता है और अप्रसिद्धकल्याणकतिथियों के लीये यह व्यवहार भीतीये पंचांगमें रखा ही नहीं है, देखिये शास्त्रीय पूरावा पृ. ८ पंक्ति २६-२७ " यदि च कल्याणकवासरा पर्वतिथयश्च एकत्रायाति तदा किं कुचन्तिते १ तत् मेकथयता, सत्यं, परमं चतुर्थदिनं यावदपि तपःपूर्ति कार्यते, पश्चाद्यथाशक्ति" ऐसा साफ कहा हुआ है और वहां ही भाद्रपद शुक्लपंचमी व समस्त पूर्णिमा अमावास्याओं की क्षय वृद्धि में भाद्रपद शुक्ल ३ और त्रयोदशीकी क्षयवृद्धि करने के लिये फरमाया हुआ है. अब आगेको चलाईये. १ पाठक ! ख्याल में रखना कि यहां वादी व शास्त्रकार दोनोही. कल्याणक तिथिको व पर्व तिथिको पृथक पृथक ही रखते है. क्योकि दो तीन चार तिथियों में कोईभी एक पर्वतिथि तो अवश्य आतीही है. और उसको कल्याणक तिथिके साथमें लेतेतो ' दो तीन भादि कल्याणकतिथि" ऐसा नहीं कहते, किंतु दो तीन चारादि कल्याणक तिथि और पर्वतिथि ऐसा ही कहते. दूसरी बात यह है कि-शास्त्रकारको एकही पर्वतिथिमें दो पर्वतिथियोकी भाराधना किसी तरह से इष्ट नहीं हो सकती है. और तपमें दो एकसनोंका एक मायंबील और दो मायंबीलका एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy