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निमित्त
होना नैमित्तिक है । उसी प्रकार सूर्य का किरण निमित्र है और तद्रूप सूर्यकान्तमणि का होना नैमित्तिक है ।
समयसार कर्त्ता कर्म अधिकार गाथा नं० ८० में लिखा है कि:--
जीव परिणामहेदु कम्मत्तंपुग्गला परिणमति । पुग्गलकम्मणिमित्तं तदेहजीवो वि परिणमई ॥
अर्थ -- जीव के रागादिक परिणाम का निमित्त पाकर पुद्गल द्रव्य कर्म रूप अवस्था धारण करता है तथा कर्म के उदय का निमित्त पाकर जीव भी तद्रूप अवस्था धारण करता है, यह मी निमित्त नैमित्तिक संबंध दिखलाया है । जीव का रागभाव निमित्त है और तद्रूप कार्माण वर्गणा का कर्म रूप होना नैमित्तिक है । उसी प्रकार मोहादिक कर्म का उदय निमित्त है और तद्रूप जीव की अवस्था होना नैमिचिक है। ये दोनों अवस्था एक समय में ही होती है जिस कारण एक ही समय में जीव तथा पुद्गल द्रव्य निमित्त भी है और नैमित्तिक भी है । किसको उपादान और निमित्त कहेंगे ? समयसार सर्व विशुद्धि अधिकार गाथा नं० ३१२- ३१३ में लिखा है कि-
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