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निमित्त
. अर्थ--सम्यक्त्व का रोकने वाला मिथ्यात्व नामा कर्म है, ऐसा जिनवर देवने कहा है । उस मिथ्यात्व नामा कर्म के उदय से यह जीव मिथ्यादृष्टि हो जाता है, ऐसा जानना चाहिए । आत्मा के ज्ञान को रोकनेवाला ज्ञानावरणी नामा कम है, ऐसा जिनवरने कहा है । उस ज्ञानावरण कर्म के उदय से यह जीव अज्ञानी होजाता है ऐसा जानना चाहिये। आत्मा के चारित्र का प्रतिबन्धक मोहनीय नामा कर्म है, ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है । उस मोहनीय नामा कर्म के उदय से यह जीव अचारित्री अर्थात् रागी द्वषी होजाता है, ऐसा जानना चाहिए । इन तीन गाथाओं में निमित्त-नैमित्तिक संबंध दिखलाया है, कर्म का उदय निमित्त है और तद्रूप आत्मा की अवस्था होना नैमित्तिक है।
और भी समयसार बन्ध-अधिकार गाथा नं. २७८ २७६ में लिखा है कि-- जह फलिहमणी सुद्धो ण सयं परिणमइ रायमाईहिं! रंगजदि अण्णेहिं दु सो रत्तादीहिं दव्वेहिं ॥ एवं णाणी सुद्धो ण सयं परिणमइ रायमाईहिं । राइजदिं अण्णेहिं दु सो रामादीहिं दोसेहिं ॥
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