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शब्द-शक्ति का एक परिचय है । वास्तविक शक्ति स्फोट में ही रहती है । अत: स्फोट और स्फोटनिष्ठा शक्ति का अध्ययन भी शक्ति के सम्यक् परिचय के लिये परमावश्यक है ।
दूसरी बात प्राजकल के अर्थातिशय' शास्त्र की दृष्टि है। आजकल भाषा - विज्ञान के विद्यार्थी शब्द-शक्ति का बड़ा सविस्तर अध्ययन कर रहे हैं । जिस प्रकार भारत की सूत्र - शैली प्रसिद्ध है उसी प्रकार आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन में विस्तार की प्रणाली एक सामान्य बात हो गई है । यद्यपि भारतीयों की त्रिविधा शक्ति की विवेचना में सभी बातें आ जाती हैं पर उसी का नवीन अर्थातिशय की दृष्टि से विचार करना भी कम उपादेय नहीं होता । कुछ लोगों के अनुसार तो नए ढंग का शक्ति का अध्ययन एक अनोखी चीज है। क्यों न हो ! प्रस्थानभेदादर्शनभेद: २ । दूसरे मार्ग से जानेवाले को वही - बिलकुल वही - वस्तुएँ दूसरी देख पड़ती हैं । इसी कारण तो एक ही विश्व को भिन्न भिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न रूप में, अपने अपने ढंग से, देखा और इतने विभिन्न और परस्परविरोधी दर्शन - शास्त्रों की रचना की । तब क्यों न हम आधुनिक अर्थाविशय विद्या को शब्द-शक्ति के अध्ययन में उचित और प्रादरबीय स्थान दें !
इस त्रिविधात्मिका दृष्टि से शब्द-शक्ति का दर्शन कर लेने पर ही शब्द- ब्रह्म का दर्शन हो सकता है। प्रत्येक जिज्ञासु इस दर्शन के लिये लालायित रहता है। यहाँ केवल दिग्दर्शनमात्र करा दिया गया है
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(१) देखा - Essai de Semantique by H. Breal और Intellectual Laws by H. K. Sarkar, ( Ashutosh Volume III)
( २ ) देखो - मधुसूदन सरस्वती कृत प्रस्थानभेद ।
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