________________
भारतीय कला में गंगा और यमुना ५०१ को शांत तथा शुद्ध प्राचरण का होना अनिवार्य बतलाया गया है। इन्हीं कारणों से पूजा तथा मूर्ति विकास को प्रपृथक् मानना युक्तिसंगत है। ___ भारतीय शिल्पकला में हिंदु-मूर्तियों का निर्माण गुप्त काल से पाया जाता है, क्योंकि इसी स्वर्णयुग में ब्राह्मण धर्म का पुनः प्रचार हुआ जो परम भागवत गुप्त नरेशों के साहाय्य का परिणाम था । विष्णुधर्मोत्तर में उल्लेख मिलता है कि गंगा तथा यमुना की मूर्ति वरुणदेव के साथ तैयार की जाती थी, जो वैदिक काल से एक महान् देव माने जाते थे। वेदों में वरुण की स्तुति के मंत्र भी प्रचुरता से मिलते हैं। जिससे उनकी महत्ता का ज्ञान होता है। परंतु विष्णुधर्मोत्तर के वर्णन के अतिरिक्त तक्षण-कला में एक भी तत्सम उदाहरण नहीं मिलते। वरुण प्राचीन काल से जलदेवता माने जाते हैं; अतएव गंगा तथा यमुना ( जलदेवी ) का उनसे संबद्ध होना असंभव नहीं है। गुप्त काल में गंगा और यमुना की मूर्तियों का अभाव नहीं है परंतु वे उनकी स्वतंत्र मूर्तियाँ नहीं हैं। इस स्थान पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि गंगा तथा यमुना की मूर्ति का समावेश प्रस्तर-कला में कैसे हुमा। इसका विचार करने से पूर्व गंगा और यमुना की मूर्तियों से समता रखनेवाली विभिन्न प्रस्तरमूर्तियों पर ध्यान देना प्रावश्यक ज्ञात होता है।
ई० पू० द्वितीय तथा प्रथम शताब्दियों में भारतीय कला का विकास भरहुत, साँची तथा मथुरा में दृष्टि-गोचर होता है। इस कला का संबंध बौद्धों से था। इसमें बुद्ध तथा उनकी जीवन-संबंधी
(१)इ० ए०, भा० ५, पृ. ६८। (२) भारतीय शिल्प-शास्त्र, पृ० ५४ । (३) विष्णुधर्मोत्तर, भा० ३, अ० ५२। (१) ऋग्वेद, १।२५।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com