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________________ (१७) भारतीय कला में गंगा और यमुना [लेखक - श्री वासुदेव उपाध्याय, एम० ए०, काशी] पतितपावनी माता गंगा के नाम से कौन अपरिचित होगा । वैज्ञानिक संसार न केवल इसके जल का गुणगान किया करता है वरन गंगा को हिदू धार्मिक हृदय में बहुत ही ऊँचा स्थान दिया गया है । भारत के प्राचीनतम साहित्य से लेकर आधुनिक काल तक गंगा-यमुना की स्तुतियाँ अनेक स्थलों पर सुलभ हैं तथा स्तुति-विषयक ग्रंथ भी उपलब्ध हैं। ऋग्वेदिक काल में गंगा तथा यमुना को आधुनिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त न था, परंतु एक स्थल पर अन्य नदियों के साथ साथ इनकी भी कुछ स्तुति की गई है- इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति शुतुद्वि स्तोमं सचता परुष्णया । सिक्न्या मरुवृधे वितस्तथाजकीये शृटुव्या सुषोमया ॥ —ऋक्०, १०।७३१५ इस प्रकार ऋषियों ने गंगा का नामोल्लेख किया है। संस्कृतसाहित्य के रामायण' तथा महाभारत महाकाव्यों में भी गंगा माता की स्तुति का पर्याप्त मात्रा में वर्णन मिलता है। पौराणिक समय में धार्मिक भाव की वृद्धि के साथ गंगा तथा यमुना का बहुत ही उच्च कोटि का वर्णन मिलता है। गंगा समस्त पापों को नाश करनेवाली पतितों को तारनेवाली तथा जल-स्पर्श मात्र से स्वर्ग (१) बालकांड, सगं ४२; अयोध्या०, सगँ ३५ । ( २ ) वनपर्व, अध्याय १०६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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