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भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४८८ मद्य और थियेटर जिन भारतीयों के विलास के सहायक थे उनके अानंद-व्यसन ग्रोको की रुचि के अनुकूल प्रतीत होते हैं।
__इनके व्यसन में मद्य और पुष्पों का स्थान मुख्य अानंद व्यसन
था। शरीरांत लंबे सज और अंगराग आदि त्रियों का सौंदर्य द्विगुणित करते थे। मालविकाग्निमित्र में लाक्षणिक
और ग्राम्य संगीत का बड़ा विशद वर्णन मिलता है। वसंतोत्सव पर बड़े बड़े कवियों के नाटक खेले जाते थे, उस समय मदमत्त दर्शक रंगमंच के सम्मुख बैठे मापे में नहीं रहते थे। नगर की दीर्घिकाओं में स्नान करते समय महिलाएं बच्चों की तरह अत्यधिक आनंद-कोड़ा करती थीं। वे जल को पीटती थी जिससे मृदंग की भाँति ध्वनि निकलती थी। एक स्थल पर कवि ने कहा है कि ग्रीष्म ऋतु में जो सुरभियुक्त प्राम्रमंजरी मद्य और पाटलपुष्प अपने साथ लाती है, कामी जनों के सारे पाप हरण कर लेती है। यह वक्तव्य इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि यह व्यसनी नागरिकों के आनंद-व्यसनों के लिये अनुकूल वातावरण को इंगित करता है। सुदर बागीचों के कुंजों में पुष्पों और पल्लवों द्वारा प्रस्तुत शय्याओं का वर्णन प्राप्त होता है। इस प्रकार लोग अनेक प्रकार से आनंद मनाते थे। जब कोई राजा सुरा और सुदरी के फेर में पड़कर राजकार्य सचिवों के हाथ में छोड़ देता था ( सन्निवेश्य सचिवेष्वतः परं स्त्रीविधेयनवयौवनोऽभवत्-रघु०, १६, ४) तब स्त्रियों के साथ रहते हुए उस राजा के मृदंग-ध्वनि द्वारा प्रतिध्वनित प्रासाद में नाच-रंग के उत्सव उत्तरोत्तर बढ़ते जाते थे३ । यह वर्णन अंतिम मौर्य सम्राट् बृहद्रथ का स्मरण करा देता है ।
(१) मावलिका०, १-२ । (२) प्रथितयशसा भाससौमिल्लककविपुत्रादीनाम् । -मालविका०, १ । ( ३ ) कामिनीसहचरस्य कामिनस्तस्य वेश्मसु मृदननादिषु ।
___ ऋद्धिमन्तमधिकद्धिरुत्तर: पूर्वमुत्सवमपोहदुत्सवः ॥-रघु०, ११,५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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