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भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४७५ स्वाभाविक चातुरी, जो अन्यत्र से नहीं सीखी जाती, कोयल में सर्वथा सिद्ध है। कोयलें अपने बच्चों का अन्य पक्षियों से पालनपोषण कराती हैं परंतु जैसे ही ये बच्चे उड़ने योग्य हो जाते हैं वैसे ही अपने पालक पक्षियों को छोड़कर अन्यत्र उड़ जाते हैं । परंतु फिर भी ये विचार स्वार्थपर अवस्था के थे। दुष्यंत की लंपटता के लिये कुछ उचित सहायता चाहिए थी और उसे उसने स्त्रियों के मनोविज्ञान को इंगित कर लेना चाहा। शिव के विचार खियों के प्रति और ही हैं। उनके विचार में पुरुष और स्त्री के नैतिक स्थान में भेद-भाव करनेवाले लोग मूर्ख हैं। भले दोनों को समान समझते हैं। शिव अरुंधती का, स्त्री होने के कारण, अनादर नहीं करते वरन् सप्तर्षि-मंडल के अन्य ऋषियों की भाँति ही उसकी भी प्रतिष्ठा करते हैं। परंतु पुरुषों की ही भाँति स्त्रियों के प्रति भी न्याय का दंड-विधान बड़ा कठोर था और मालविकाग्निमित्र नाटक की नायिका मालविका के समान स्त्रियाँ भी बेड़ी पहनाकर ( निगडबंधनं ) पातालाभिमुख कारागार में डाल दी जाती थी । उनका व्यावहारिक (legal) स्थान भी कुछ ऊँचा न था। उनके अपने अधिकार बहुत थोड़े थे। विधवा रानी अपने अधिकार से सिंहासन पर नहीं बैठ सकती थी वरन् अपने गर्भ के भावी पुत्र के अधिकार से बैठती थी । इसी प्रकार विधवा भी अपने पति की उत्तराधिकारिणी नहीं समझी जाती थी
और उसके पति का सारा धन पुत्र के अभाव में राजकोष में चला जाता था।
(१) अभि. शाकुं०, २२ । (२) कुमार०, ६ । (३) मालविका०, ४, चेटी। (४) रघु०, १६, १५ ।
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