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________________ ३७४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका संभवत: वह प्रधान बोली उत्तर भारत के मध्य भाग में बोली जानेवाली पाली भाषा थी जिसने सम्राट अशोक के समय में समस्त भारतवर्ष में प्रधानता प्राप्त कर ली थी। पाली भाषा संस्कृत की समकालीन अथवा उससे भी कुछ पुरानी थी। संस्कृत का व्यवहार जिस समय साहित्य में बहुत अधिक होता था उस समय पालो केवल बोलचाल के ही काम में लाई जाती थी। दोनों की जननी एक ही भाषा थी जिसे महर्षि पाणिनि ने 'छंदस ' नाम दिया है। इसी भाषा की भिन्न भिन्न बोलियों में वेदों की ऋचाओं की रचना हुई है । इससे स्पष्टत: प्रकट होता है कि संस्कृत में जो संख्यावाचक शब्द पाए जाते हैं वे वैदिककालीन भाषाओं से ही उत्पन्न हुए हैं। वैदिककालीन बोलियों की उत्पत्ति प्रार्यों की उस भाषा से हुई है जो वे भारतवर्ष में प्राने से पहले मध्य-एशिया में बोलते थे। अर्थात् संस्कृत के संख्यावाचक शब्दों के भी मूल रूप मध्य-एशियावाली आर्य-भाषा के संख्यावाचक शब्द थे। आगे दिए हुए मूल आर्यभाषा की भिन्न भिन्न योरोपीय, ईरानी तथा भारतीय शाखाओं के प्रधान संख्यावाचक शब्दों की तुलना करने से विदित हो जायगा कि ये सभी शब्द किसी एक ही मूल भाषा के शब्दों से निकले हैं Pali, the latter may be taken to represent the basis or source of the former. —Origin and Development of the Bengali Language ; $ 511-S. K. Chatterjee. संख्यावाचक शब्द स्वभाव से ही स्थायी और अपरिवर्तनशील होते हैं । उनमें ध्वनि तथा रूप का विकार कम होता है। इसी से तुलनात्मक अध्ययन के लिये संख्यावाचक शब्द ही चुने जाते हैं। श्रतएव चटर्जा महाशय की कल्पना के बिना भी काम चल सकता है।-संपादक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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