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चिहकित मुद्राएँ
३४५ बताया है। बी वर्ग के सिक्कों का चंद्रगुप्त के समय का निश्चित होना इतिहास में एक महत्त्व की बात है। इसके आगे मैार्यकाल के पूर्व के सिक्कों का निश्चय होना सरल हो जायगा । बौद्धकाल में कौशांबी, श्रावस्ती, मथुरा और अति प्रादि स्वतंत्र राज्य थे और इनके सिक्के भी वैसे ही चिह्नांकित (Punch-marked) रहे होंगे। संभव है कि ए वर्ग के सिक्कों में से कुछ उन देशों के बौद्धकाल के निकल आवें। हस्तिनापुर के नष्ट हो जाने पर पांडव-कुल कौशांबी उठ आया था। यदि कौशांबी की खुदाई हो तो वहाँ पांडव-कुल के सिक्के अवश्य मिलेंगे। इस प्रकार इन चिह्नांकित मुद्राओं का अध्ययन हमको धीरे धीरे महाभारत-काल तक ले जायगा। उससे आगे भी जा सकेंगे या नहीं, यह विशेष अध्ययन और खोज से निश्चत होगा। पर कोई प्राश्चर्य नहीं कि महेंजोदरो की सभ्यता से लेकर क्रमानुसार पीछे की सब भारतीय सभ्यताओं का सिलसिला मिल जाय ।
पर खेद इस बात का है कि हमारे शिक्षित भारतीय पुरातत्त्व में अभी बहुत कम ध्यान देते हैं। इसमें सभी की सहायता की आवश्यकता है। सारे संस्कृत और प्राकृत साहित्य का पुरातत्त्व की दृष्टि से अध्ययन करना प्रावश्यक है और यह सबकी सहायता से ही हो सकता है। पुरानी मुद्रा की खोज और रक्षा में भी सबकी सहायता प्रपेक्षित है।
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