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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय हृदय का आकर्षण पाया। गोपाल कृष्ण और वासुदेव कृष्ण ने मिलकर इसमें एक ऐसे स्वरूप को जनता के सामने रखा था जिसमें प्रेम-प्रवणता और नीति-निपुणता की एक ही व्यक्ति में वह अनुपम संसृष्टि हो गई जिसकी ओर दृष्टिपात करते ही जन-समुदाय के हृदय में प्रेम और विश्वास एक साथ जागरित हो गया। कृष्ण ने जनता के हृदय के कोमल तंतुओं का ही स्पर्श नहीं किया था, उनके हृदय में अपनी सुरक्षता की दृढ़ भावना भी बद्धमूल कर दी थी। कृष्ण के प्रेम में जनता ने अर्जुन के समान ही अपने आपको सुरक्षित समझा। ईसा के चार सौ वर्ष पहले चंद्रगुप्त मौर्य की सभा में रहनेवाले यवन राजदूत मेगास्थनीज़ ने जिस 'हिरैक्लीज़' हरि = कृष्ण) को 'उन शौरसेनियों का उपास्य देव बतलाया जिनके देश में मथुरा नगरी प्रवस्थित है और यमुना प्रवाहित होती है, वह कृष्ण ही था। पांचरात्रों के द्वारा गृहीत होने के कारण यह ऐकांतिक धर्म पांचरात्र और सात्वतों के कारण सात्त्वत धर्म कहलाया। नारायण के साथ एकरूप होकर, कृष्ण विष्णु के अवतार माने जाने लगे थे इसलिये वह वैश्णव धर्म कहलाया। इनके भगवान् या भगवत् कहलाने से इस धर्म की भागवत संज्ञा भी हुई। ईसा से १४० वर्ष पूर्व तक्षशिला के यवन राजा एंटिपाल्काइडस का राजदूत, डिओस का पुत्र हेलिओडोरस जो विदिशा के राजा काशिपुत्र भागभद्र की सभा में रहता था, भागवत था। उसने 'देवदेव वासुदेव' का गरुडध्वज-स्तंभ बनवाया था जिस पर उसने अपने आपको स्पष्टतया भागवत लिखा था । गुप्तराजकुल, जिसका समय चौथी से पाठवों शताब्दी तक है, वैष्णव था। गुप्त राजा अपने आपको परम-भागवत कहा करते थे। उनके (.) देवदेवस वासुदेवस गरुडध्वजे अयं कारिते इभ हेलिश्रोदोरेण भागवतेन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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