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________________ ४७६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका पच्छिराज पच्छिम निगाह बिषराह भंजि, उत्तर बराह-मुख संपति अनंत को ॥ भने कबि 'मान' तुंड ऊरध तुरंग मानि, बिद्या-ज्ञान-दानि त्रानकारी सुर-संत को । रच्यो जो न रंच न बिरंचि के प्रपंच मुख, पंचक सु बंदी पंचमुखी हनुमंत को॥ १७ ॥ जामें मेल मुद्रिका समुद्र कूदि गो ज्यों अरि प्रोड्यो जिहि कुलिस-प्रहार पुरहूत को । समर घमंड जासों ग्रस्यो है उदंड अत्र कीन्हो मद खंडन अखंडल के सूत को ॥ 'मान' कवि जासो बोलि अमृत अमोल बोल, दंपति सुखद पद पायो राम-दूत को । मारतंड-मंडल अखंड गिल्यो जासों यह, दौ मुख-मंडल प्रचंड पौन-पूत को ॥१८॥ गराज मुख जाकी होत हूह उड़ें अरिन के जूह, कूह __ फैलत समूह सैन भागि जातुधान की। जाकी सुने हंक मच्यो लंक में अतंक, लंक पति भो ससंक निधरक प्रीति जानकी ॥ भनै कबि 'मान' आसुरीन के अरभ गिरें गर्भिन गरभ सिंधु सरभ सँसान की। अंबुद अवाज जासों लाजत तराज बंदी, बज्र ते दराज सो गराज हनुमान की ॥१६॥ खल-दल काजै गाज गिरती दराजै जन जोम की मिजाजे सिरताजै सफ-जंग की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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