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प्रेमरंग तथा आभासरामायण रथ परभारी जोम चढ़ दौड़ा। महापार्श्व विरूपाक्ष का जोड़ा॥ भाई महोदर जंग में छोड़ा । बंदर कोटी कोट को तोड़ा।
सुग्रीव लड़ को निशिचर को मोड़ा || बिरूपाक्ष गज चढ़ा बढ़ा सुग्रीव से लड़ा। एक पेड़ से गज गिराया बिरूपाक्ष उछल खड़ा॥ तेगा ढाल लै को लड़ता । सुग्रीव शिला-वृक्ष से भिड़ता। चोट तेगाखाय निकल को उड़ता। उछल लात छाती में जड़ता ॥
प्राण छुटे आँखें फाड़ को गिरता ॥१०॥ हुकुम सो महोदर ने बंदरों को भगाया। सुग्रीव ने ललकार शिला सिर में लगाया ॥ निशिचर तिल तिल उड़ाई । रथ तोड़ जमीन देखाई ॥ हथियार तोड़े मूकी लात चलाई । तेगा ओ ढाल की लड़ाई ॥
सुग्रीव काटा सीस बेश वाह पाई ॥१०॥ मारा सुना महोदर महापार्श्व प्राय धाय । कपि का कतल्ल किया लिया अंगद सों राढ़ जाय ॥ बानों का बरसात बरसाया । रथ तोड़ा जमीन देखाया ।। लोहंगमारा अंगद कूद बचाया। मूकों सोजमलोक पहुंचाया।
___ महापार्श्व मरने सो रावन को रोवाया ॥१०२॥ कट गए सभी सहाय रहा अकेला आप। रथ पर तामस के अस्त्र सो बंदरों को दे संताप ॥ बानों का बादल सा छाया । राघोजी के रूप लोभाया । अव्वल ललकार लछमन अटकाया। लड़ने छोड़े राम पर धाया ॥
असुराख्न पर राम अग्न्यान चलाया ॥१०॥ रथ तोड़ दिया लछमन बिभीषन मिल कों। बी चलाई भाई बचा लछमन बेधे पिल को। १०१-बेश = बहुत अच्छी।
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