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________________ ४२० नागरीप्रचारिणी पत्रिका सीताकुमार सीख किया नुगु जुबाँ सभी । रघुनाथ कों सुनाय के लोभाय बस किया ॥११॥ स्वर तान ताल राग रंग सएर की मजा । स्रवनन् पियाले भर भर पायूख सब पिया ॥१२॥ लवकुश कहें औ राम सुनें सुर नर मुनि बीच । रघुनाथ ने किया सो आखिर तलक भया ॥१३॥ एक अवधपुरी भरी पुरी जरजरी निशान । खुशदिल बसें बसिदे मुतलक सेंगम गया ॥१४॥ अज के कुमार दसरथ महारथ छतर धरै। नवखंड सात द्वीप मों करे दया मया ॥१॥ पटरानि तीन तीन से पचास महलसरा। हुए साठ हजार साल छत्र चँवर रण दिया ॥१६॥ दसरथ उमर बुढ़ानी बिना पुत्र फिकरमंद । कहा जग्य मैं करौं जो गुरु बसिष्ठ सिध करें ॥१७॥ सुमंत्र कहे मैं सुना सनत्कुमार से। ऋषिशृंग को बोलाय जगन सदन में धरें ॥१८॥ ऋषि ल्यावने दसरथ गए घर रोमपाद के। सनमान सों बोलाय सकल जन पायन परें ॥१॥ सरजू के पार जग्य करो ब्रह्मऋषि कहे। न्योता पठाओ सबन को मंडलेश के घरें ॥२०॥ ११-जुबाँ = कंठाग्र, याद। १२-सएर =शेर, फारसी का पद । १३-आखिर तलक = अंत तक । १४-जरजरी निशान = जहां पुराने चिह्न वर्तमान हैं या (जर+जड़ी) जहाँ सुनहले मंडे फहरा रहे हैं। बसिदेबाशिंदः, नागरिक । मुतलक =(अ.) वर्तमान । १९-महतसरा = अंतःपुर, रनिवास। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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