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________________ कवि जटमल रचित गोरा बादल की बात ३८६ कर उसकी दशा और की और हो गई । दूसरे दिन राजा के प्रति अत्यंत स्नेह दिखलाकर उसके वहाँ से बिदा होते समय राजा भी उसको पहुँचाने चला । प्रत्येक द्वार पर वह राजा को भेंट देता गया और सातवें दरवाजे के बाहर निकलते ही, गुप्त रीति से तैयार रखी हुई, सेना के द्वारा उसे पकड़वा लिया। फिर उसको बंदी बना दिल्ली ले गया, जहाँ पर वह राजा से कहता कि पद्मिनी के देने पर ही तुम कैद से मुक्त हो सकोगे । इस विषय में जटमल कहता है कि १२ वर्ष तक लड़ने पर भी सुलतान किले को फतह नहीं कर सका, तब उसने दिल्ली लौट जाने के बहाने से डेरे उठाना शुरू कर दिया और रत्नसेन से कहलाया कि मैं तो अब लौटता हूँ, मुझे एक प्रहर के लिये ही चित्तौड़ का किला दिखला दो और मेरे इस वचन को मानो तो मैं तुम्हें सात हजारी (मंसबदार) बना दूँ, पद्मिनी को बहिन और तुम्हें भाई बनाऊँ तथा बहुत से नए इलाके भी तुम्हें दूँ । सुलतान के इस प्रस्ताव को राजा ने स्वीकार किया और बादशाह को अपना मिहमान बना किले में बुलाया । वहाँ उसने पद्मिनी को देखना चाहा । फिर खिड़की के बाहर निकला हुआ पद्मिनी का मुख देखते ही उसकी पापमय वासना बढ़ गई । उसने राजा को लोभ में डाल अपना मिहमान बनाने की इच्छा प्रकट कर उसको अपने साथ लिया । प्रत्येक दरवाजे पर पारितोषिक आदि देकर राजा का मन बढ़ाता गया और किले के अंतिम दरवाजे से बाहर जाते ही उसने राजा को पकड़वा लिया । जायसी लिखता है कि कुंभलनेर के राजा ने पद्मिनी को लुभाकर ले आने के लिये एक वृद्धा दूती को चित्तौड़ में भेजा । वह तरुणी-भेष धारण कर पद्मिनी के पास पहुँची और युवा अवस्था में पति का वियोग हो जाने से कुंभलनेर के राजा के पास चलने और भोग-विलास में दिन बिताने की बात कही । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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