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________________ ४५६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कालदंड हू ते जे कराल, ततकाल जिन कीन्हों अक्ष कील कालनेमि हू के भंग की। भनै कबि 'मान' लंक जिनसे प्रधान सो प्रधान मीडि मारे बड़े बिक्रम अडंग की। हरै जनु अंधै सिंधु सातहूँ उलंघे भरी बल रंधै धन्य जधै बजरंग की ॥४६॥ चरण एक बार पार पूरि रहे पारावार है न वारापार पार बल-बिक्रम अकूत के। जिनके धरत डग धरनी उगत धिंग धाराधर धक्कनि सो धूरि होत धूत के। भने कबि 'मान' करें संतत सहाइ जे ढहाइ खल-गर्ब गंज गरुड़-गरूर के। चापि चूरे जिनसों निसाचर उदंड ते वे प्रबल प्रचंड बंदी चरन पौन-पूत के॥४७॥ गोपद-बरन तोयनिधि के तरन अक्ष दल के दरन जे करन अरि-अंत के। आपदुद्धरन दया दीन पै धरन, कालनेमि-संघरन उर-आभरन संत के ॥ प्रौढर-ढरन 'मान' कबि के भरन चारौं फल के फरन जय-करन जयवंत के। असरन-सरन अमंगल-हरन बंदी ऋद्धि-सिद्धि-करन चरन हनुमंत के॥४८॥ ऊरधबदन के बिरदन के बदन के कदन सदन गज रदन के अंत के। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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