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________________ हिंदी की गद्य-शैली का विकास अतिरिक्त यह कहना कि “गद्यशैली को विषयानुसार बदलने का सामर्थ्य उनमें कम था" ध्रुव सत्य नहीं है। उनका ध्यान इस विषय विशेष की ओर था ही नहीं, अन्यथा यह कोई बड़ी बात नहीं थी। यदि वे केवल इसी के विचार में रहते तो आज ऐसा कहने का अवसर उपस्थित न होता। उनका ध्यान एक साथ इतने अधिक विषयों पर था कि सबका एक सा उतरना असंभव था। स्वभावत: जिन विषयों का प्रभो उन्हें प्रारंभ करना था अथवा जिन विषयों पर उन्होंने कम लिखा उन विषयों के उपयुक्त भाषा का सम्यक निर्धारण वे न कर सके। उनके सामने अच्छे प्रादर्श भी उपस्थित न थे। फिर अपनी रचना का वे स्वयं तुलनात्मक विवेचन करते इसका उन्हें अवसर ही न था। अतएव उन्हें इसके लिये दोषी ठहराना अन्याय है। भारतेंदुजी की गद्य-शैली एक नवीन वस्तु थी। इस समय उन्होंने भाषा का एक परिमार्जित और चलता रूप स्थिर किया था। उनका महत्त्व इसी में है कि उन्होंने गद्य-शैली को "अनिश्चितता के कर्दम से निकालकर एक निश्चित दशा में रखा। इसके लिये एक ऐसे ही शक्तिशाली लेखक की मावश्यकता थी और उसकी पूर्ति उनकी लेखनी से हुई। भारतेंदु के ही जीवन-काल में कई विषयों पर लिखना प्रारंभ हो चुका था। उनके समय तक इतिहास, भूगोल, विज्ञान, वेदांत इत्यादि आवश्यक विषयों के कतिपय ग्रंथों का निर्माण भी हो चुका था। अनेक पत्र पत्रिकाएँ भी प्रकाशित हो रही थीं। उत्तरी भारत में हिंदी का प्रसार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण था कि अब २९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034972
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1931
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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