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________________ हिंदी की गद्य शैली का विकास १८१ भाषा के बाहुल्य में इनका पता नहीं लगता । प्राज बीसवीं शताब्दी की खड़ी बोलो की रचनाओं का इतिहास इस विचार में बहुत प्राचीन है । काव्य का प्रेम सभी में होता है, चाहे अँगरेज हो, चाहे मुसलमान हो । है, सभी में सरसता होती है और सभी कल्पना के वैभव का अनुभव करते हैं। जिस समय मुसलमान भारतवर्ष में आए उस समय, यह तो स्पष्ट ही है कि, उस भाषा का व्यवहार वे नहीं कर सकते थे, जिसका इतने दिनों से वे अपने आदिम स्थानी में करते आए थे । यहाँ आने पर स्वभावतः उन्हें अपनी भाषा का स्थान हिंदी को देना पड़ा । अतः जिन्हें साहित्य का निर्माण करना अभीष्ट था उन्होंने ब्रजभाषा और अवधी की शरण ली । इसी प्रवृत्ति का यह परिणाम हुआ है कि सूफी कवियों के समुदाय ने हिंदी में रचना की है। इन कवियों ने अपनी रचनाओं में बड़ी सुंदर और मार्मिक अनुभूति की व्यंजना की है। इनके श्रमस्वरूप कई ग्रंथ तैयार हुए । इनमें अधिकांश उत्तम और उपादेय हैं। कुतुबन, मलिक मुहम्मद जायसी, उसमान, शेख नबी, कासिम शाह, नूर मुहम्मद, फाजिल शाह प्रभृति ने एक से एक उत्तम रचनाएँ तैयार कीं । इन सरसहृदयों से हिंदी में एक प्रकार का विशेष काव्य तैयार हुआ । इनके अतिरिक्त कितनी ही अन्य रचनाएँ की गई हैं, जो एक से एक उत्तम हैं और जिनमें एक से मनोरंजक चित्र उपस्थित हुए हैं । मलूकदास, रहीम, रसखान, नेवाज इत्यादि ने स्थान स्थान पर कितने हिंदू कवियों से कहीं अधिक मधुर और प्रोजस्विनी कविताएँ लिखी हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com चाहे वह हिंदू हो, सभी को हृदय होता
SR No.034972
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1931
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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