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जयमल और फत्ता की प्रतिमाएँ
१६७ प्रतिमाओं के आगरे में स्थापित होने का वृत्तांत सुना होगा, तब नेपाल-नरेश ने उसका अनुकरण किया होगा, क्योंकि गोरखा लोगों की उत्पत्ति चित्तौड़ नगर, और सीसोदिया राजपूतों से हुई है। जब कि बादशाह अकबर ने शत्रु होकर भी उक्त वीरों का इतना बड़ा सम्मान किया था, तब नैपाल के महाराज अपने पूर्वजों की राजधानी चित्तौड़ के रक्षार्थ प्राण देनेवाले पुरुषों की मूर्तियाँ बनावें, इसमें कौन सी आश्चर्य की बात है ? इन प्रतिमानों के अस्तित्व से भारतीय इतिहासवेत्ता अपरिचित थे। परंतु अब श्री सद्गुरुशरण अवस्थी बी० ए० की शोष का अस्पष्ट संकेत मिलने से वे प्रसिद्धि में आई हैं।
नवीन शोध द्वारा दूर देश नेपाल में जयमल और फत्ता की मूर्तियाँ प्रसिद्धि में प्राई, इसलिये उक्त वीरों का प्रसंगवश प्रति संक्षिप्त परिचय मात्र देना भी ठोक होगा। मंडोवर के स्थान में राजधानी जोधपुर ( वि० सं० १५१५ में ) नियत करनेवाले राव जोधा राठौड़ के चतुर्थ राजकुमार राव दूदा ने वि० सं० १५१८ में मेडता नगर में और पंचम कुमार राव बीका ने वि० सं० १५२२ में बीकानेर में स्वतंत्र राज्य स्थापन किए थे। राव दूदा के पात्र और राव बीरमदेव के पुत्र राव जयमल्ल मेड़ता राज्य के स्वाधीन अधिपति थे। जोधपुर के प्रसिद्ध राव मालदेव से अनेक घोर संग्रामों के उपरांत जब राजधानी मेड़ता पर बादशाह अकबर का अधिकार हो गया, तब राव जयमल्ल वैवाहिक संबंध के कारण चित्तौड़ चले आए, क्योंकि इनके चचा रत्नसिंह की पुत्री भारत-विख्यात मीराबाई का विवाह श्रामन्महाराण्या साँगा (संग्रामसिंह) के ज्येष्ठ युवराज भोजराज से हुआ था। तत्कालीन मेदपाटेश्वर महाराणा उदय.
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