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जयमल्ल और फत्ता की प्रतिमाएँ १६५ ने बादशाही अनंत द्रव्य और सेना का संहार किया है, उन विपक्षियों की केवल वीरता तथा देशभक्ति पर प्रसन्न होकर इतना बड़ा सम्मान किया गया है,तो हम लोग जब साम्राज्य की निष्कपट सेवा करेंगे, तथा उसके निमित्त प्राण देंगे तब हमारा
और हमारी संतान का अत्यंत प्रादर होगा। क्षत्रिय नरेशों का उक्त प्रतिमाओं के प्रभाव से प्रभावित होने का एक ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलता है। वह इस प्रकार है कि-चित्तौड़ के दुर्ग-रक्षक जिस प्रकार जयमल्ल और फत्ता थे उसी प्रकार प्रसिद्ध रणथंभोर दुर्ग का नायक श्रीमान् महाराणा उदयसिंहजी की ओर से बूंदी का महा सामंत राव सुर्जन हाड़ा था। चित्तौड़-विजय के उपरांत ही अकबर ने रणथंभौर पर आक्रमण किया, तब उक्त हाड़ा राव ने बादशाह के प्रलोभन देने से महाराणा से विश्वासघात करके दुर्ग सम्राट् के अर्पण कर दिया और स्वयं भी महाराणा को त्यागकर बादशाही सेवक हो गया। इस बात पर जोधपुर के महाराजा यशवंतसिंह (प्रथम) का प्रधान मंत्री सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता मूणोत नैणसी महता. अपनी ख्यात ( रचनाकाल वि० सं० १७०५ से १७२५ तक ) में अकबर की वीरोचित गुणग्राहकता तथा जयमल्ल फत्ता की दृढ़ राजभक्ति और स्वामी-द्रोही बूंदी के राव सुर्जन का विश्वासघात दिखाने के उद्देश से लिखता है कि "चित्तौड़ के रक्षार्थ अपने प्रिय प्राण देनेवाले राव जयमल्ल राठौड़ और रावत फत्ता सीसोदिया की तो बादशाह ने हाथियों पर चढ़ी मूर्तियाँ बनवाकर राजद्वार पर खड़ी कराई. परंतु स्वामी-द्रोही राव सुर्जन की एक कुत्ते की मूर्ति बनवाकर उसी स्थान पर रखवा दी, जिससे वह बड़ा लज्जित तथा मर्माहत
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