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जयम और फत्ता की प्रतिमाएँ १६३ इसी कारण नोट-बुक में फत्ता का फट्टा लिखा होगा। फिर स्मरण न रहने से वही अशुद्ध नाम लेख में लिखना पड़ा हो। परंतु वास्तव में दोनों प्रतिमाएँ चित्तौड़ के रक्षार्थ सम्राट अकबर से घोर युद्ध करके वीर गति पानेवाले इतिहास-प्रसिद्ध योद्धा राव जयमल्ल राठौड़ और रावत फत्ता ( पत्ता ) सीसो. दिया की ही होनी चाहिएँ। अवस्थीजी ने उस लेख में राजामल्ल आदि की कुछ प्राचीन प्रतिमाओं के फोटो भी दिए हैं। परंतु जयमल्ल फत्ता की मूर्तियों के चित्र नहीं दिए। यदि उनका भी चित्र देते तो मेरे कथन की पुष्टि हो जातो, क्योंकि वे मूर्तियाँ किसी अनुभवी मूर्तिकार की बनाई हुई होंगी तो नेपाल के विरुद्ध उक्त मूर्तियों के वस्त्र, शस्त्र, वेशभूषा, भावभंगी आदि सब राजपूताना के होने संभव हैं।
विज्ञ पाठकों को एक बड़ी शंका और हो सकती है कि चित्तौड़ के वीरों की मर्तियाँ नेपाल जैसे दूर देश में क्यों बनाई गई। इसका भी कुछ विस्तृत समाधान मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार किया जाता है। सम्राट अकबर बड़ा ही गुणग्राही, नीति-कुशल, वीर, बुद्धिमान् तथा वीरों का प्रादर करनेवाला था। यद्यपि जयमल और फत्ता उसके विपक्षी थे और युद्ध में अपार जन तथा धन का विनाश कर चुके थे, तो भी बादशाह उक्त दोनों वीरों की स्वामिभक्ति और वीरता पर ऐसा मुग्ध हो गया कि अपनी राजधानी आगरा में पहुँचते ही उसने बड़े विशाल श्वेत पाषाण ( संगमरमर ) के दो हाथी बनवाए
और उनके ऊपर जयमल तथा फत्ता की पूर्णाकार प्रतिमाएँ बैठाकर राजधानी (आगरा) के किले के द्वार पर स्थापित की गई, और उनकी प्रशंसा के लिये इसी भाव का राजस्थानी
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