________________
१५४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका संक्रांति के दिन मनाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस त्योहार का अभिप्राय सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में माने तथा उसके चक्रों को संकेत करना है। किंतु इसका संबंध कृषि से भी मालूम होता है। शिवजी श्रावण शु० सप्तमी को इस पृथ्वी पर पधारते हैं। इस कारण सप्तमी और नवमी को यह उत्सव किया जाता है। ____यह साफ मालूम होता है कि यह त्योहार भारतीय डोलयात्रा का रूपांतर ही है। हमारे देश में यह फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें जो कुछ फरक हो गया है वह समय और स्थान के कारण से है। . परंतु झूले के लट्ठों को मेरु पर्वत, रस्सों को शेष, तीन तखतों को तीन देवताओं, अर्थात् प्रादित्य, चन्द्र और धरणी, का चिह्न रूप माना जाता है। इससे यह भी संभव है कि, यह उत्सव देवताओं के समुद्र-मंथनवालो कथा के स्मृतिरूप हो। भूले के झोटे पूरब पश्चिम दिशा में दिए जाते हैं।. इससे भी इस विचार की पुष्टि होती है।
जिस प्रकार भारतवर्ष में गुड़ियों और कठपुतलियों के खेल तमाशे होते हैं उसी प्रकार जावा में भी होते हैं। वहाँ
पर इन तमाशों को वार्याग कहते हैं। जावा में महाभारत और वायांग
यद्यपि जावा-निवासी ५०० वर्ष से मुसल
मान धर्मानुयायी है तो भी उनके वायांगों में अब तक हिंदुओं की प्राचीन कथाएँ प्रचलित हैं। इन वायांगों का दिखलानेवाला, जिसे "दालंग" कहते हैं, कठपुत
( 9 ) “Encyclopædia of Religion and Ethics," (vol. V., p. 889.)
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com