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________________ और ज्ञानी - ध्यानी महात्मा थे। उनके साथ गुलाब मुनि भी थे । उनके सान्निध्य में मन्दिर का काम पूरा हुआ । थाना नगर और श्रीपाल महाराजा का घनिष्ठ संबंध है । वे यहाँ के राजा के दामाद थे और सिद्धचक्र के परम आराधक थे । उन्होंने यहाँ पर शाश्वती ओलीकी आराधना की थी। इसी आराधना के कारण पूर्व में उनका कोठ रोग दूर हुआ था । इसी प्रसंग को ध्यान में रखते हुए मन्दिर की दीवारों में श्रीपाल और मैनासुंदरी का संपूर्ण जीवन चरित्र उत्कीर्ण किया गया। इसके कारण मंदिर की शोभा में चार चांद लग गये। यह कार्य सेठ मंगलदास त्रिकमचंद झवेरी की देखरेख में पूरा हुआ । इसके अलावा श्रीसिद्धचक्र की आराधना हेतु इस मंदिर में श्रीसिद्धचक्र यंत्र की प्रतिष्ठा भी की गयी । यह यंत्र संगमरमर पत्थर में खुदवाया गया है । मन्दिर के प्रवेशद्वार पर दोनों ओर दो गजराजों की शोभा देखते ही बनती है । मंदिर में प्रवेश करते ही भक्त भाव विभोर हो जाते हैं और परमात्मा के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। यहीं पर एक सुविशाल उपाश्रय है, जहाँ साधु-मुनिराजों के प्रवचन अक्सर हुआ करते हैं और आराधक श्रावक सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमणादि क्रियाएँ किया करते हैं । यहाँ आसपास के प्रदेशों से यात्री भी आया करते हैं और भगवान की सेवा पूजा करते हैं। उनके ठहरने की सुविधा के लिए यहाँ एक धर्मशाला बनी हुई है। यहाँ की भोजनशाला में यात्रियों के भोजन की सुव्यवस्था है। उन्हे यहाँ शुध्द और सात्त्विक भोजन Siree praha naswami Gyanb श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ५४ www.umaragyhaleur.com
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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