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भक्तिभाव से वन्दन किया ।
जिस स्थान पर प्रतिबोध प्राप्त अश्व ने अनशन किया था; वह स्थान 'अश्वावबोध' के नाम से जाना जाने लगा। उस देव ने वहाँ प्रभु श्रीमुनिसुव्रत स्वामी के मंदिर का निर्माण किया और प्रभु की मूर्ति के आगे उसने अश्वरूप में अपनी मूर्ति भी स्थापित की। उस समय से वह स्थान अश्वावबोध तीर्थ के रूप में जाना जाने लगा ।
महावीर वाणी
जं कीरइ परिरक्खा, णिच्चं मरण - भयभीद - जीवाणं । तं जाण अभयदाणं, सिहामणिं सव्वदाणाणं । ।
मृत्यू के भय से भयभीत जीवों की रक्षा करना अभयदान कहा जाता है। यह अभयदान सभी दानों में शिरोमणी के समान है।
गुणेहि साहू अगुणेहिऽसाहू, गिण्हाहि साहूगुण मुंचऽसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ।।
(कोई भी व्यक्ति) गुणों से साघु एवं अगुणों से असाधु बनता है। इसलिये साधु के गुणों को धारण करो एवं असाधुता का त्याग करो। आत्मा को आत्मा द्वारा जानकर जो समभाव में रहते है वे ही पूज्य है।
जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्य कीसन्ति जंतबो । ।
जन्म दुःख है; बुढापा दुःख है; रोग दुःख है एवं मृत्यू दुःख है। ओह, संसार दुःख ही है, इसमें जीव को क्लेश प्राप्त होता रहता है।..
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