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की परिषद समवसरण में उपस्थित होती है और प्रभु का उपदेश श्रवण करती है।
अर्थ तथा काम, पुरुषार्थ तो जीव अनादि काल से करता रहा है पर धर्म पुरुषार्थ के मामले में वह हमेशा पीछे रहा है। जीव ज्यों ज्यों उम्र से बढता जाता है, त्यों त्यों अर्थसंस्कार और कामसंस्कार उसे अपने आप होने लगते है। धन कमाना और उसका उपभोग करना आदि बातें सिखाने जरूरत नहीं होती। हर व्यक्ति ये सब बाते सीखता ही है; पर धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ हर.. कोई नहीं कर सकता। धर्म का ज्ञान हासिल करने के लिए साधु-सन्तों का समागम आवश्यक है। धर्म का ज्ञाता ही मोक्ष पुरुषार्थ की साधना कर सकता है और धर्म के सत्य स्वरूप का ज्ञान : . तीर्थकर परमात्मा ही करवाते है। इसीलिए प्रार्थना सूत्र में परमात्मा कोजगद्गुरूकहा गया है।
श्री तीर्थंकर परमात्मा केवल ज्ञानी होते हैं। उनका ज्ञान सर्वोत्कृष्ट होने के कारण प्रत्येक द्रव्य की अनन्त पर्यायों का साक्षात्कार करता है। भगवान को पहले केवलज्ञान होता है और फिर केवलदर्शन; पर छद्मस्थ (जो केवली नहीं है) को पहिले दर्शन होता है और ज्ञान। दर्शन सामान्य रूप से होता है और ज्ञान विशेष रूप से।
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श्रीमनिसव्रत स्वामी चरित३३ Shree Sudhathaswami Gvanbhandamara Surat
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