________________
श्री तीर्थकर परमात्माने मोहनीय कर्म को तेज शराब की' ... उपमा दी है। शराब के कारण मनुष्य की मनुष्यता खत्म हो जाती है, उसकी बुध्दि प्रष्ट हो जाती है और उसके खानदान की इज्जत । मिट्टी में मिल जाती है, इसी प्रकार मोहनीय कर्म के उदय के कारण ... - मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। मोह के नाश में वह बेभान, बेकरार, बेरहम और बेईमान भी बन जाता है। अपनी इच्छा-पूर्ति के लिए वह विश्वासघात और हत्या तक कर बैठता है। विषय-वासना से ग्रसित मनुष्य को इस बात का जरा भी ख्याल नहीं : रहता कि किसी का दिल दुखाना, किसी का घर बरबाद करना या किसी की भी इज्जत लूटना कितना बड़ा पाप है।
वीरकुविन्द पागल बन गया था। वह गली गली भटकता .. था। एक बार वह राजमहल के समीप आ गया। झरोखे में वनमाला राजा के पास बैठी आमोद-प्रमोद कर रही थी। अचानक उसकी नजर वीरकुविन्द पर पड़ी। अपने पति की दयनीय दुर्दशा देखकर उसे बड़ा दुःख हुआ। वीरकुविन्द ने भी वनमाला को देख लिया पर वह कुछ भी न कर सकता था। वनमाला को राजमहल से वापस ले जाना आसान नहीं था।
वीरकुविन्द के दर्शन से वनमाला को अब पश्चाताप होने लगा। उसने अपने प्रेमी राजा से भी अपने पति की दुर्दशा की बात कही। राजा को उसके पति पर दया आ गयी। उसे अपने दुराचरण पर पछतावा होने लगा। उसने वनमाला को उसके पति के पास भेजने का निश्चय किया। वनमाला भी अपने पति के पास जाने के लिए तैयार थी; पर उन दोनों की यह इच्छा पूरी नहीं हुई। अचानक आसमान से बिजली गिरी और उन दोनों की मृत्यु हो गयी।
श्रीमनिसबत स्वामी चरित४
Shree Sudhathraswalingsgarbi
ragyanbhandar.com