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हरिवंश की उत्पत्ति देवाधिदेव श्री अरिहन्त परमात्मा तथा पूज्य गुरूदेव को नमस्कार कर मैं वर्तमान चौवीसी के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का पावन चरित प्रारंभ करताहूँ।
किसी भी देश, जाति, कुल या वंश के नाम के मूल में इतिहास होता है; कोई न कोई घटना होती है। जैसे - प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान के इक्ष्वाक वंश की स्थापना इन्द्र महाराज ने की थी। उस समय भी ऋषभ देव शिशु रूप में थे और माता मरूदेवी की गोद में बिराजमान थे। श्री इन्द्र महाराज अपने कंधे पर गन्नाले कर भगवान के पास पहुँचे; तब गन्ना लेने के लिए
भगवान ने अपने नन्हे नन्हे हाथ आगे बढा दिये। उस समय इन्द्र • महाराज ने विचार किया कि भगवान गन्ना चाहते हैं। गन्ने को
- संस्कृत में इक्षु कहते हैं; अतः इक्षु के कारण उन्होंने भगवान के वंश it का नाम इक्ष्वाकुरखा।
हरिवंश की उत्पत्ति भगवान शीतलनाथ के शासन काल में हुई। उस काल में कौशाम्बी नगर में सुमुख राजा राज्य करता था। यद्यपि वह सत्यवादी था; फिर भी धर्म के सत्य स्वरूप से अनजान था। प्रजा पालक होते हुए भी उसका जीवन न्याय-नीतियुक्त नहीं था और स्वभाव से सरल होते हुए भी वह धर्म मार्ग से दूर था। इसी कारण से वह विषय-मोगों में लिप्त रहता था। उसे अपनी रानियों के साथ उद्यानों में विहार करने का और सरिता सरोवरादि में जलक्रिडा करने का बडाशौक था। __उसी नगर में एक जुलाहा रहता था। उसका नाम था वीर
श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umāra, Surat-
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