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मेरी मेवाड़यात्रा प्रधानतः, उदयपुर के जैनों में मुख्य दो वर्ग कहे जा सकते हैं। ओसवाल और पोरवाल। मेवाड़ के राजवंश के साथ, ओसवालों का सम्बन्ध बहुत समय से चला आता है, यह बात पहले कही जा चुकी है। इस प्राचीन-सम्बन्ध का प्रभाव, आज भी स्पष्ट दीख पड़ता है। मेहता कुटुम्ब और ड्योढीवालों का सम्बन्ध, आज भी अधिकतर राजपरिवार के साथ ही जुड़ा हुआ है। उन्हें, छोटी-मोटी जागीरें अथवा कोई छोटीवड़ी नौकरी, आज भी मिली हुई है । इन्हीं के द्वारा, वे अपने आपको राजपरिवार के निकट के सम्बन्धी कहलाने के गौरव से युक्त मानते हैं । जिस सीसोदिया गोत्र के उदयपुर के महाराणा हैं, उसी सीसोदिया गोत्रके कुछ ओसवाल भी आज मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त, मेहता कुटुम्ब के कुछ ओसवाल ऊँचे ऊँचे पदों पर भी मौजूद हैं। जैसे कि मेहता जीवनसिंहजी साहब ख़ास कौन्सिल के मेम्बर हैं और उनके पुत्र मेहताजी तेजसिंहजी साहब दीवान हैं । मेहताजी रामसिंहजी, महकमा खास के ऊँचे अधिकारी हैं। इनके अतिरिक्त, कारूलालजी कोगरी, मोतीलालजी सा० वोरा, चतुरसिंहजी लोढ़ा, अम्बालालजी सा० दोसी, आदि अनेक ओसवाल भाई बड़े बड़े पदों पर आसीन हैं और महाराणाजी सा० के कृपापात्र बने रहे हैं। श्रीयुत मदनसिंहजी साबियाबी. ए. शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी हैं। और भी अनके ओसवाल हाकिम, नायब हाकिम; तथा अन्य ऐसे ही छोटे मोटे ओहदों पर कार्य कर रहे हैं। ओसवालों में शिक्षा का खूब अच्छा प्रचार है और इसी लिये उनमें अनेक वकील, बैरिस्टर, डॉक्टर
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