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मेरी मेवाडयात्रा जिस राज्य में धातुओं की ऐसी खदानें हों, उस राज्य की प्रजा कंगाल रहे, यह एक आश्चर्य की बात है।
उदयपुर राज्य की जो खास विशेषता है, वह है-उसके राजवंश की प्राचीनता । उदयपुर का राजवंश, वि० सं० ६२५ के लगभग से प्रारम्भ होकर, आजतक थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ बरावर राज्य करता चला आ रहा है। लगभग चौदहसौ वर्ष तक एक ही प्रदेश पर राज्य करनेवाला, एक ही राजवंश, सारे संसार में शायद ही कोई दूसरा विद्यमान हो। मुसलमानों और पठानों के समय में, अनेक राज्य नेस्तो नाबूद हो गये किन्तु राणाओं का राज्य ही ऐसा राज्य है, कि जो मुसलमानी धर्म की उत्पत्ति के पूर्व भी मौजूद था और आज भी विद्यमान है।
इसी तरह, उदयपुर के राजवंश का गौरव भी उसकी एक विशेषता है। यह बात पहले कही जा चुकी है, कि यद्यपि उदयपुर का राज्य बहुत बड़ा नहीं है, किन्तु उसके राजवंश का गौरव, भारतवर्षीय समस्त राज्यों की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ जाता है। उदयपुर का राज्य, सूर्यवंशी राज्य है। किन्तु समस्त सूर्यवंशियों में वे सर्वोपरि माने जाते हैं। भारतवर्ष के समस्त राजपूत राजा, उदयपुर के महाराणाओं को शिरोमणि मान कर उनके प्रति पून्य भाव रखते आये हैं। ऐसा होने का खास कारण है इस राज्य की स्वातन्त्र्यप्रियता और धर्मसम्बन्धी दृढता। उदयपुर राज्य का यह मुख्य सिद्धान्त है कि
“जो दृढ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार"
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