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मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में
१०१ मन्दिरों की असातना दूर करने वाले तथा नये मन्दिरों की स्थापना करने वाले लल्लूभाई को हम लोग कैसे भूल सकते हैं ? इतना अधिक कार्य करने पर भी, आज लल्लूभाई का नाम उन जड़ पत्थरों पर खुदा हुआ कहीं नहीं दीख पड़ता । फिर भी, यह नाम सब की-सारे देश के जैनों की जबान पर रम रहा है। यदि, जैन जाति समाज के-धर्म के सच्चे सेवकों की कद्र करने की वृत्ति वाली होती, तो आज लल्लभाई की कितनी ही मूर्तियां मेवाड़ के मन्दिरों में मौजूद दीख पड़ती। फिर भी, उनके कार्य तो आज मी जीते-जागते मौजुद ही हैं। उन कार्यों को देखने वालाउनके इतिहासाकीखोज करने वाला तोजरूर ही लल्लूभाई को याद करेगा
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