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मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश मै बन साहुलसिहजी साहब, पो. सुप्रि० सा• यदसिंहजी, गंगापुर के तहसीलदार सा०, सहाडा के हाकिम सा० चन्द्रनाथजी सा०, देवस्थान हाकिम साहब मथुरानाथजी साहब, जाशमा के नायब हाकिम साहब मोतीलालजी भण्डारी, काँकरोली के हाकिम साहब माथुर साहब, केसवा के ठाकुर साहब रामसिंहजी, चारभुजा के थानेदार सा० और केलवाड़ा के नायब हाकिम साहिब जोधसिंइजी सुराना, आदि विभिन्न स्थानों के अनेक ऑफिसरों ने, जिस तरह स्वयं व्याख्यानादि का अच्छा लामः उठाया था, त्योंही स्था. नीय मनता को एकत्रित करने में भी खासतौर पर परिश्रम किषा था। भऔर इसी परिश्रम एवं लगन का यह परिणाम था, कि जहाँ एक भी घर मूर्ति पूजक जैन का नहीं होता था, ऐसे स्थानों पर भी सैकड़ों या हजारों की संख्या में जनता एकत्रित होजाती थी। उपर्युक्त महानुभाव, अपनी इस सज्जनता तथा सहयोग के लिये सचमुच ही धन्यवाद के पात्र हैं । अमर आत्मा लल्लूभाई
मान से बीस वर्ष पूर्व, स्वर्गस्थ गुरुदेव श्री विजयधनसरिजी महारान ने उदयपुर में चतुर्मास किया था, तब पाटण की पगड़ी बाथे हुए एक गृहस्थ, अपनी धर्मपत्नी सहित गुरु महाराज के पास आते और भोली-भाली भाषा में मेवाड़ के मन्दिरों की स्थिति का वर्णन करते थे। उस समय विदित हुआ था, कि वे पारण के (2) निवासी हैं और मेवाड़ के मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाने के उद्देश्य से, अपनी पत्नी सहित मेवाड़ में ही रहते हैं।
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