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मेरी मेवाड़यात्रा
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आरणी की प्रतिष्ठा.
मेवाड़ में हजारों मन्दिर होते हुए भी किसी किसी गाँव में नये मन्दिर होते जाते हैं और प्रतिष्ठाएँ भी। अनुभव से यह ज्ञात हुआ है कि कई ऐसे स्थान हैं जहाँ कुछ लोग मूर्तिपूजक हैं अथवा तेरापंथीस्थानकवासी में से पृथक् होकर मूर्ति पूजक बनते हैं। इन लोगों की श्रद्धाओं को टिकाये रखने के लिये मन्दिर यह साधनभूत अवश्य है। ऐसी हालत में, ऐसे स्थान में पूजा पाठ के लिये मन्दिर का साधन बनाना जरूरी है। पिछले कुछ वर्षों में मेवाड़ में ऐसे कुछ मन्दिर बने हैं । इनमें से आरणी का भी एक मन्दिर है।
आरणी में कुछ घर मन्दिरमार्गी हुए हैं। उन्होंने एक छोटा सा मन्दिर बनाया है और उसकी प्रतिष्ठा हमारे समक्ष सं. १९९२ माघ सुदि १३ के दिन की गयी। प्रतिष्ठा की विधिविधान का कार्य उदयपुर वाले यतिजी श्री अनूपचन्द्रजी ने बड़ी योग्यता के साथ किया था। यहां करीब एक हजार मनुष्य एक त्रित हुए थे, जोकि बहुधा तेरापंथी और स्थानकवासी थे । इन लोगों को उपदेश देने का मोका अच्छा प्राप्त हुआ।
__यति श्री अनूपचन्द्रजी का कुछ परिचय पहले दिया जाचुका है। आप मेवाड़ के प्रसिद्ध यतियों में से एक मुख्य हैं ! आपके हाथ से मेवाड़ में कुछ नहीं तो कम से कम २५-३० प्रतिष्ठाएँ हुई हैं। प्रतिष्ठाएँ कराना, यह न केवल एक धर्म की सेवा है, परन्तु इसमें राज्य की भी सेवा है । क्योंकि ऐसी प्रतिष्ठाओं
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