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श्रीसंघ की आप में कितनी अगाध श्रद्धा थी ? यह नीचे के उदाहरण से स्पष्ट हो जायगा। मालवादेश में चीरोला नामका छोटासा ग्राम है। वहाँ प्रायः ओसवाल जैनसमाज में कोई २५०-३०० वर्ष से जातीय वैमनस्य था। वह इतना भयङ्कर कि जिस का वर्णन भी अशक्य है। कन्याव्यवहार तो अलग, पर परस्पर जल-पान बन्द था । इसका विषैला प्रभाव दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन यह कुसम्प मालवा प्रान्त की सम्पूर्ण जैनसमाज का दो खण्ड कर देगा-यह सोच कर कितने ही आचार्य और अग्रगण्य जाति भाईयोंने इसे सुलझाने का, नष्ट करने का प्राण-पण से प्रयत्न किया, परन्तु सफलता किसीको प्राप्त नहीं हुई। इस कुसंप का हम यहाँ स्थानाभाव से अधिक वर्णन न करते हुए मात्र इतना ही कहेंगे कि इतने वर्षों से पड़े कुसुंप को भी श्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरजीने अल्पश्रम से निर्मूल व अशेष स्मृति-चिह्न कर डाला | यह इनके तप तथा आदर्शता की साकारता थी। विस्तार-भय से सूरिवर के ऐसे ऐसे अनेक-कृत्य हैं जिनका हम उल्लेख नहीं करेंगे। समय अधिक हो गया है, अतः अब उनकी
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