________________
की भी सांगोपांग रचनायें निर्मित हैं जो दर्शकों के हृदय को अत्यानन्दित करती हैं।
इस दृष्टि से आप ही बताइये, अगर आप वहाँ तक जा कर अनुभव नहीं कर सकते हैं तो मन्दिर कितना विशाल है और यह अपने तथा राणकपुर के भूत-गौरव के प्रति क्या संकेत करता है । इस समय भी मन्दिर का जीर्णोद्धार सादड़ी की आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ीने कराया है । इस कार्य में अभी तक ५-६ लाख रुपये व्यय हो चुके हैं और फिर भी हो रहे हैं। शिल्पकला के एवं धर्म के ऐसे तीर्थ-स्थान पर यह धन का सदुपयोग उनका अत्यंत ही सराहनीय है।
दूसरा जिनालय भगवान् श्रीपार्श्वनाथ का है। यह धरणविहार के ठीक सामने एक वाटिका के उत्तराभिमुख आया । इसमें मूलनायक की प्रतिमा २३ फुट ऊंची है और इसके अतिरिक्त ३८ प्रतिमायें और भी हैं। कहा जाता है कि इस मन्दिर को धन्नाशाह के मुख्य मुनीमने बनवाया है। शिल्पकला की दृष्टि से यह जिनालय भी प्रशंसनीय एवं दर्शनीय है।
तीसरा जिनालय भगवान् श्रीनेमिनाथ का है
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com