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प्रत्येक मन्दिर तथा अन्य ऐतिहासिक स्थानों के दर्शन - अवलोकन आलोचन करते ।
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घाणेराव से ४ माईल पूर्व में 'महावीर - मुछाला ' नामका एक सशिखर भव्य प्राचीन जिनालय यह जिनालय सघन झाड़ी के बीच आया हुआ है । पाठकगण महावीर - मुछाला नाम पढ़ कर कुछ विस्मित होंगे कि ' मुछाला' नाम कैसे पड़ा ?, इसको भी यहाँ स्पष्ट कर देना उचित है । यह बात तो निश्चित है कि हमारे पूर्वजोंने इतिहास के तत्वों को कभी भी महत्व नहीं दिया । उनकी एक मात्र प्रवृत्ति काव्य-रचना में ही लगी रहती थी । अगर हमारे पूर्वज इतिहास तत्व को भी महत्व देते तो आज भारत के अतीत का इतिहास आधुनिक या किसी भी ढंग से लिखने में किञ्चित् भी अड़चन नहीं आती। यह अवहेलना सर्वत्र सर्व प्रकार कलाकौशल में व्यापक पाई जाती है । कहने का अर्थ यह है कि हमारे पास ऐसा तो कोई ठोंस एवं सत्य प्रमाण नहीं है कि हम जिसके आधार पर यह कह सकें कि महावीर - मुछाला नाम इस प्रकार पड़ा ?, इस विषय में एक दन्त-कथा प्रचलित है कि “ महावीर - मन्दिर की प्रतिष्ठा हो चुकने के कुछ वर्षो पश्चात् उदयपुर के महाराणा महावीरप्रभु के
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