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४८ मान में लोग इसको 'सुमेर' नाम से संबोधित करते हैं । यह नाडलाई से ६ मील दूर पूर्व-दक्षिण में अरबली के समीप सघन झाड़ी में है। किसी समय यह आबाद नगर था । यहाँ का वर्तमान सशिखर जिनालय भी ४०० वर्ष पूर्व का बना हुआ है । इसके निर्माता एक नाहरगोत्रीय ओसवाल थे जो इसी नगर के रहनेवाले थे। मन्दिर में भगवान् श्रीशान्तिनाथ की श्वेतवर्ण १ हाथ बड़ी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। उनके आस-पास भी दो प्रतिमा विराजमान हैं। मन्दिर के चतुर्दिक् चारदिवारी है। कुछ वर्षों के पहेले पृथ्वीराज नवलखाने सराहनीय परिश्रम करके इसका जीर्णोद्धार करवाया है। इसके सामने पास ही यात्रियों के ठहरने के लिये एक धर्मशाला भी है और उसमें यात्रियों की सुविधा के लिये सर्व प्रकार का सुन्दर साधन है। कहा जाता है कि पहले यहाँ ओसवालों के अनेक घर आबाद थे, पर इस समय एक भी घर नहीं है। स्थान का एकान्तपन एवं वन की विहड़ता यात्रियों के हृदय में भय उत्पन्न कर देती है, परन्तु देसूरीसंघ का समस्त प्रबन्ध सराहनीय है कि जिसके कारण ऐसे विहड़ जंगल में भी मंगल है ।
षष्ठी को संघ का प्रस्थान 'देसूरीगढ़' के प्रति
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